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Saturday, May 28, 2011

KUCCH LUV JAISAA REVIEW


कुछ ही दर्शक करेंगे ‘‘कुछ लव जैसा’’ को ‘‘लव’’
निर्माता-विपुल अमृतलाल शाह, कथा, पटकथा, संवाद, निर्देशन-बरनाली रे शुक्ला, एडिटर-हेमंती सरकार, सिनेमेटोग्राफी-बॉबी सिंह, बेकग्राउंड स्कोर-तपस रैला, संगीत-प्रीतम, गीतकार-इरशाद कामिल

इस शुक्रवार रिलीज हुई फिल्म‘‘कुछ लव जैसा’’एक छोटे बजट की फिल्म है। इस फिल्म में कोई भी नामचीन सितारा नहीं है। फिल्म के मुख्य किरदारों में राहुल बोस और शेफाली शाह हैं और यह दोनों भले ही स्टार नहीं हैं,पर दोनों ही बेहद कुशल कलाकार हैं।‘‘कुछ लव जैसा’’कहानी है दो अजनबियों की,जिनमें से कि एक गृहणी (हाउस वाइफ) है,जो कि अपनी जिं़दगी की बोरियत से दूर भागना चाहती है,और इस कहानी का दूसरा मुख्य किरदार एक अपराधी है जो कि पुलिस से भाग रहा है,और भागते-भागते ये दोनों अंजान एक दूसरे से जा मिलते हैं और फिर इन दोनों के साथ क्या होता है यही इस पूरी फिल्म में दिखाया गया है।इस फिल्म की कहानी आम मसाला हिन्दी फिल्मों से एकदम जुदा और नयापन लिये हुए है।इस फिल्म की कहानी बरनाली रे शुक्ला ने लिखी है,जो कि इस फिल्म की निर्देशक भी हैं।बतौर निर्देशक यह बरनाली रे शुक्ला की पहली फिल्म है।इससे पहले वह फिल्म‘‘थोड़ा लाइफ थोड़ा मेजिक’(2008)की कहानी लिख चुकी हैं और बतौर सह निर्देशक रामगोपाल वर्मा के साथ फिल्म‘‘सत्या’’(1998)और सुधीर मिश्रा,गोल्डी बहल,सृष्टि बहल और एकता कपूर(बरनाली ने एकता के लिए कुछ सीरियल लिखे हैं)जैसे नामी निर्माता निर्देशकों के साथ भी काम कर चुकी हैं।‘‘कुछ लव जैसा’’की कहानी तो बहुत रोचक है,पर इसका स्क्रीन प्ले(पटकथा)बेहद खराब लिखा गया है,जिसके कारण एक अलग और उमदा कहानी होने के बावजूद भी यह फिल्म बेहद बोरिंग और झिलाऊ लगती है।फिल्म की पटकथा(स्क्रीन प्ले)इसकी निर्देशिका बरनाली रे शुक्ला ने ही लिखा है और उनका लिखा गया स्क्रीन प्ले दर्शकों को ज़रा भी बांध नहीं पाता। अगर फिल्म का स्क्रीन प्ले अच्छा होता तो यह बेहद ही मजेदार फिल्म बन सकती थी। फिल्म के कुछ ही सीन दर्शकों को गुदगुदा पाते हैं,जैसे कि‘"वो कचरे वाले की घंटी वाला’’,जैसे कि वो सीन‘‘जिसमें दोनों मुख्य किरदार एक आदमी का पीछा कर रहे हैं और वह आदमी अपने मोबाइल पर पंडित जी से अपनी शादी के बारे में पूछ रहा है’’,जैसे कि वो सीन जिसमें ‘‘ऑफिस का बॉस अपने परेशान जूनियर को उसकी पत्नी से बात करते हुए देखता है’’जैसे कुछ सीन थोड़ी सी देर के लिए दर्शकों को गुदगुदाते हैं।इस फिल्म के डॉयलॉग्स(संवाद)ठीकठाक हैं और कुछ बेहद उमदा हैं,जो कि फिल्म की कहानी पर जचते हैं और असल जिंदगी के करीब भी लगते हैं,जैसे कि‘‘शादी के बाद बीवी चन्द्रमुखी, कुछ साल बाद सूरजमुखी,और वॉरंटी पीरियड खत्म होने के बाद ज्वालामुखी लगती हैं’’,‘‘लोग कहते हैं सदा सुहागन रहो, मतलब पति के पहले मर जाओ’’,‘‘लेडीज लोग 10 सेकंड में अपना माइंड बदलती हैं’’,‘‘लाईफ में जो भी सोचो उसको पूरी तरह परफेक्टली करो’’,‘‘पालक हमारे यहां तो दस रुपये में सिर्फ दो गड्डी मिलती हैं,यहां चार मिल रही हैं’’,‘‘शी इज सो हॉट शादीशुदा थोड़ी होगी’’,‘‘सुनाने वाले बहुत हैं,समझने वाला कोई नहीं’’,‘‘बहुत कम लोगों को रिस्क पर विश्वास करना आता है’’,‘‘सुबह जो हुआ वो हिस्ट्री है’’। इस फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर(बैकग्राउंड म्यूजिक)ठीकठाक है।वहीं फिल्म का संगीत भी फिल्म की कहानी के हिसाब से ठीक है।इस फिल्म के गीत फिल्म की कहानी को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं,जो कि फिल्म की कहानी के हिसाब से ठीकठाक हैं।फिल्म का कैमरा वर्क औसत दर्जे का है।फिल्म में अभिनय की बात करें तो राहुल बोस ने कमाल का अभिनय किया है और उनको दिया गया किरदार उन पर जचता भी है,जिसमें वह नेचुरल लगते हैं। फिल्म में राहुल के अभिनय के लिए उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही होगी,वहीं फिल्म में दूसरा मुख्य किरदार निभाने वाली शेफाली शाह ने भी अच्छा अभिनय किया है,पर फिल्म के कुछ सीन्स में वो ओवर एक्टिंग करती नजर आती हैं।फिल्म के बाकी कलाकारों में सुमित राघवन,मनमीत सिंह,कुनाल कुमार,अमीन हाजी,नीतू चन्द्रा और ओमपुरी सभी ने ठीकठाक अभिनय किया है।इस फिल्म की निर्देशक बरनाली रे शुक्ला की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है और इस फिल्म की कहानी,संवाद और पटकथा उन्होंने ही लिखी है।उनकी लिखी गई कहानी रोचक है और संवाद भी ठीकठाक है,पर उनका लिखा स्क्रीन प्ले और उनका निर्देशन बेहद की कमजोर है,जिसके कारण यह फिल्म उबाऊ लगती है। इस फिल्म में कई ऐसे संवाद और दृश्य हैं जिनका कोई लॉजिक नहीं है।उन इल्लॉजिक सीन्स और दृश्यों के कारण भी यह फिल्म पकाऊ लगती है।फिल्म के एक सीन में आप देखेंगे कि एक महिला शोरूम से नई कार खरीदती है और उसकी नंबर प्लेट पर कार का नंबर लिखा हुआ है,फिल्म के एक सीन में आपको कार में खुला रखा केक दिखायी देगा,असल जिंदगी में कोई किसी को खुला रखा केक कार में रखकर गिफ्ट करने नहीं ले जाता,फिल्म के क्लाईमेक्स में एक मां अपनी बच्ची से सेक्स के बारे में बात करती है।फिल्म की यह और ऐसी कई इल्लॉजीकल बातें इसके कमजोर निर्देशन के कारण है।आपमें से बहुत से लोग इस फिल्म की अंग्रेजी की स्पेलिंग देखकर सोचेंगे कि इसमें कुछ अक्षर अलग से क्यों जोड़े गए हैं,तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि इस फिल्म के निर्माता विपुल शाह हैं और उनका अंक ज्योतिष में गहरा विश्वास है।जिसके कारण इस फिल्म के नाम में कुछ अतिरिक्त अक्षर जुड़वाए गए हैं देश के जाने माने अंक ज्योतिष की सलाह से)जिससे की यह फिल्म अच्छी चले। इससे पहले भी विपुल शाह की‘‘वक्त’’,‘‘सिंह इज किंग’’,‘‘नमस्ते लंदन’’,‘‘लंदन ड्रीम्स’’और‘‘एक्शन रीप्ले’’आदि फिल्मों के नाम में भी उन्होंने देश के नामचीन अंक ज्योतिष की सलाह पर कुछ अतिरिक्त अक्षर जोड़े थे। इस फिल्म की हीरोइन और निर्माता निर्देशक विपुल शाह की पत्नी शेफाली शाह के नाम पर भी यदि आप गौर करें तो आपको उनके नाम में भी कुछ अतिरिक्त अक्षर दिखायी देंगे।अब यह विपुल की अपनी सोच है और कुछ पॉजीटिव करने के लिए ऐसा करना गलत नहीं,जिससे किसी दूसरे को हानि नहीं होती हो,बहरहाल‘‘कुछ लव जैसा’’की बात करो तो अगर आप कुछ हटकर फिल्म देखने का शौक रखते हैं या फिर आप राहुल बोस के प्रशंसक हैं और उनका उमदा अभिनय देखना चाहते हैं तो ही इस फिल्म को देखें,वरना मेरे ख्याल से तो‘‘कुछ लव जैसा’’को कुछ ही दर्शकों का लव मिल पाएगा।
फिल्म समीक्षक - अंकित मालवीय

E-mail : ankkitmalviyaa@gmai.com
plz post ur comments here about this review and film,thanks,god bless,bye

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