Omg2 रिलीज़ हो चुकी हैं,ये फिल्म 2012 में रिलीज़ फिल्म "ओह माय गॉड" का सीक्वल जरूर हैं,पर ये एकदम अलग और नई कहानी हैं,सबसे पहले बात करते हैं इस फिल्म की कहानी की,इस फिल्म में एक पिता(कांति लाल मुद्गल - पंकज त्रिपाठी )अपने बेटे का साथ देते हुए अपने बेटे के लिए समाज के सामने किस तरह खड़ा होकर लड़ाई लड़ता हैं वो दिखाया गया हैं,इस फिल्म का सब्जेक्ट बहुत ही बोल्ड और अलग हैं,ये फिल्म सेक्स एजुकेशन की बात करती हैं,जो आज तक किसी हिंदी फिल्म में नहीं की गयी,फिल्म की कहानी,डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले अमित राय ने लिखें है और इस फिल्म का डायरेक्शन भी अमित राय ने ही किया हैं,अमित राय ने इतने बोल्ड और इम्पॉर्टेंट सब्जेक्ट पर फिल्म लिखी इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए वह कम होगीं,वही फिल्म के फर्स्ट हाफ में लिखे गए अमित राय के डायलॉग्स और पंचेस भी कमाल के हैं,जो ऑडियंस को बांध के रखते हैं और गुदगुदाने के साथ साथ इतने गंभीर विषय के बारे में सोचनें पर भी मजबूर करते हैं,इस तरह के मुद्दों पर बात करते हुए दर्शकों को हसाना आसान नहीं होता,वही फिल्म के फर्स्ट हाफ के संवाद,खासकर के वह संवाद जो युवा पीढ़ी स्कूल कॉलेज में किसी साथी को तंग करने के लिए इस्तेमाल करती हैं वो बताता हैं कि अमित राय ने फिल्म के संवाद लिखने में जमीनी स्तर पर काम किया हैं,इस फिल्म की खासियत है कि इस फिल्म का सब्जेक्ट बोल्ड होने के बावजूद भी फिल्म का कोई भी संवाद अश्लील या डबल मीनिंग नहीं हैं,हालांकि फिल्म के सेकंड हाफ में आपको उतने अच्छे डायलॉग्स और पंचेस नहीं सुनने मिलते जैसे इंटरवल से पहले मिलते हैं,और फिल्म के सेकंड हाफ में फिल्म के संवादों में इमोशंस की कमी महसूस होती हैं,जिसके कारण फिल्म के पत्रों का दर्द दर्शक महसूस नहीं कर पाते,अब बात करते हैं इस फिल्म के स्क्रीनप्ले की,फिल्म के फर्स्ट हाफ का स्क्रीनप्ले एकदम चुस्त और दुरुस्त हैं,जिसके कारण ऑडियंस पूरी तरफ फिल्म में डूबा रहता हैं और आगे क्या होगा उसको लेकर उत्सुकता भी बनी रहती हैं,मगर अफ़सोस फिल्म के सेकंड हाफ में फिल्म के संवादों की तरह फिल्म का स्क्रीनप्ले भी कमजोर लगता हैं,जिसके कारण ऑडियंस को फिल्म कुछ जगह बोरिंग और थोड़ी डल भी लगती हैं,इस फिल्म की कहानी के हिसाब से इस फिल्म को देखतें हुए दर्शकों की आंखे भर आनी चाहिए थी पर ऐसा नहीं होता और इंटरवल के बाद फिल्म डिप करती हैं क्यूंकि इंटरवल के बाद की फिल्म में वही सब होता हैं जो आम तौर पर हिंदी फिल्मों में होता हैं और सेकंड हाफ की फिल्म प्रेडिक्टेबल लगती हैं,फिल्म के दूसरे हाफ में इमोशंस कूट-कूट के भरे जाने चाहिए थे,पर इमोशंस की कमी फिल्म के सेकंड हाफ में ऑडियंस को खलेगी इस फिल्म के स्क्रीनप्ले की ये सबसे बड़ी खामी हैं,अब बात करते हैं इस फिल्म के एक्टर्स की,फिल्म में पिता कांति शरन मुद्गल के किरदार में पंकज त्रिपाठी का अभिनय बहुत ही नेचुरल है और पूरी फिल्म में वो बेहद अच्छे लगते हैं,बड़े समय के बाद लोग पंकज त्रिपाठी को एक नए और फ्रेश अवतार में देखेंगे और पसंद भी करेंगे,पर उनके संवाद फिल्म में सही नहीं लगते,क्युकी फिल्म को उज्जैन की प्रष्ट भूमि पर दिखाया गया है और फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने जो भाषा बोली हैं उस तरह की बोली उज्जैन और उसके आस पास की हैं,पर पंकज त्रिपाठी उसको सही से नहीं पकड़ पाए फिल्म की इतनी बड़ी गलती के लिए हम केवल पंकज त्रिपाठी को दोषी नहीं ठहरा सकते,ये गलती उन लोगों की भी हैं जो पंकज त्रिपाठी जैसे होनहार कलाकार को सही लोकल लैंग्वेज सीखा नहीं सके और डायरेक्टर की भी जिन्होंने इस पर धयान नहीं दिया,अगर फिल्म में छेत्रीय भाषा की जगह डायलाग नार्मल हिंदी में भी रखें जाते तो आम दर्शकों को फिल्म के संवाद समझने में आसानी होती और वह डायलॉग्स ज़्यादा असरदार भी लगते,वही फिल्म में कांति लाल मुद्गल की बीवी के रोल में गीता अग्रवाल शर्मा ने बेहद उम्दा अभिनय किया हैं,और उन्होंने अपने हर सीन में अपने जानदार अभिनय से जान फूक दी हैं और ऐसा लगता हैं की फिल्म में उनके कुछ और इमोशनल सीन होते तो शायद फिल्म की इमोशनल वैल्यू बढ़ती,फिल्म में कांति लाल के बेटे विवेक के रोल में आरुष वर्मा का काम शानदार हैं पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर उनके साथ जो हो रहा हैं उसका दर्द दिखता हैं,जो उनके अभिनय का ही कमाल,यहाँ में आपको बता दू,ये आरुष की पहली फिल्म हैं,फिल्म में आरुष की बहन बनी अन्वेषा विज का भी काम अच्छा हैं,फिल्म में यामी गौतम का काम एवरेज हैं,वही जज के किरदार में पवन राज मल्होत्रा का अभिनय लाजवाब हैं,इस फिल्म में उनके काम की जितनी तारीफ की जाए वह कम होगी,वही फिल्म के स्पेशल अपीरियंस में अक्षय कुमार शंकर भगवान् के रोल में जचते हैं और उनका काम भी दर्शकों को पसंद आएगा,अक्षय इस फिल्म के प्रोडूसर भी हैं और ऐसे सेंसेटिव और महत्वपूर्ण विषय पर लगभग 180 करोड़ रुपए की फिल्म बनाने का जोखिम लेना आसान काम नहीं था,इसके लिए अक्षय की प्रशंसा की जानी चाहिए,फिल्म के अन्य किरदारों में डॉ मालवीय के रोल में बृजेन्द्र काला जब भी आते है छा जाते हैं,वही पुजारी के रोल में गोविन्द नामदेव और माहेश्वरी के डार्क शेड रोल में अरुण गोविल का काम अच्छा हैं,फिल्म में डॉ शाह के रोल में राजन भिसे,तेल बेचने वाले के रोले में जीतेन्द्र शास्त्री और वकील की भूमिका में विजय मिश्रा ये तीनो इनको दिए गए रोल्स में परफेक्ट लगते हैं और तीनों ने अपने छोटे-छोटे किरदारों को भी बख़ूबी निभाया हैं,फिल्म में जज के टाइपिस्ट के किरदार ऋषिकेश वेदांदे ने निभाया हैं और फिल्म में उन्होंने बॉडी लैंग्वेज से किस तरह दमदार अभिनय किया जाता हैं वो असरदार तरीके से दिखाया हैं,अब बात करते हैं इस फिल्म के गीत-संगीत की इस फिल्म में जो गाने हैं वह सब गाने अच्छे हैं पर कोई भी सुपरहिट सांग नहीं हैं,"हर हर महादेव" में बीन का अच्छा इस्तेमाल किया हैं,पर उस गाने की धुन अजय देवगन की फिल्म शिवाय के गाने "बोलो हर हर" से मिलती हैं और वो गाना इस गाने से बेहतर था,"ऊंची ऊंची वादी" सुनने में अच्छा लगता हैं,इस फिल्म के गाने और अच्छे हो सकते थे,फिल्म के गानों के बोल भी ठीक-ठाक लिखे गए हैं,बात करे फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर की तो फिल्म में मंगेश धाकड़े का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा हैं जो फिल्म की कहानी और सिचुएशन को सपोर्ट करता हैं,फिल्म में अलमेंदु चौधरी का कैमरा वर्क अच्छा हैं,वही फिल्म की एडिटिंग की बात की जाए तो फर्स्ट हाफ की एडिटिंग तो शार्प हैं पर सेकंड हाफ की एडिटिंग थोड़ी टाइट होनी चाहिए थी,पर इसमें फिल्म के एडिटर सुवीर नाथ की गलती नहीं क्युकी जब फिल्म के सेकंड हाफ का स्क्रीनप्ले ही थोड़ा डल हैं तो इसमें एडिटर भी कुछ नहीं कर सकता,फिल्म को सेंसर बोर्ड के 27 कट और चैंजेस का भी नुकसान उठाना पड़ा वो फिल्म में कई जगह साफ़-साफ़ नज़र आता हैं,कई जगह एक्टर की वॉइस डबिंग,तो क्रोमा पे रीशूट किए सीन्स भी समझ आते हैं,जैसे फिल्म के ट्रेलर में अक्षय कुमार का किरदार ट्रैन की पटरी के बाजू में नहाता हुआ नजर आ रहा था,पर वही फिल्म में क्रोमा पे रीशूट किया दिखता हैं,इनमे से कुछ बदलाव सेंसर बोर्ड के कारण और कुछ फिल्म के टीज़र और ट्रेलर के रिलीज़ के बाद जो कम अकल लोग फिल्म को इंटरनेट पर ट्रोल करते हैं शायद उनके कारण ये बदलाव किए गए होगें,ताकि फिल्म के रिलीज़ के बाद कोई हंगामा न हो,आदिपुरुष फिल्म के राइटर और डायरेक्टर की गलतियों का खामियाजा इस फिल्म को चुकाना पड़ा और शायद आगे भी ये आने वाली फिल्मो को चुकाना पड़ेगा,अब बात करते हैं इस फिल्म के डायरेक्शन की इस फिल्म का डायरेक्शन अमित राय ने किया हैं और वही इस फिल्म के राइटर भी हैं,इससे पहले 2010 में अमित राय की पहली फिल्म "रोड टू संगम" रिलीज़ हुयी थी,जिसके लिए अमित राय को लगभग 18 इंटरनेशनल अवार्ड मिले थे,Omg2 अमित राय के डायरेक्शन में बनी दूसरी फिल्म हैं,इस फिल्म का जो सब्जेक्ट था उस बोल्ड सब्जेक्ट पर फिल्म लिखना और डायरेक्ट करना आसान काम नहीं था और अमित राय ने अपने डायरेक्शन और राइटिंग के जरिए बड़ी ही समझदारी के साथ इस सब्जेक्ट को हैंडल किया हैं और फिल्म के ज़्यादातर कलाकारों से उन्होंने अच्छा अभिनय करवाया हैं,जिसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए वो कम होगी,पर उनको फिल्म में इमोशनल वैल्यू की तरफ भी धयान देना चाहिए था,खासकर फिल्म के दूसरे हिस्से में फिल्म में इमोशनल सीन्स की बेहद कमी महसूस होती हैं,जिसके कारण एक अच्छी फिल्म होने को बावजूद भी ये दर्शकों को उतना नहीं छू पाती,जितना इसके सब्जेक्ट और कहनी के कारण छूना चाहिए था या ये भी हो सकता हैं की सेंसर बोर्ड के 27 कट्स और बदलाव के बाद हमें असली फिल्म देखने ही नहीं मिली,उम्मीद हैं ott पर इसकी ओरिजिनल फिल्म विथाउट कट रिलीज़ की जाए और इस फिल्म से एडल्ट सर्टिफिक्टे हटाकर सेंसर बोर्ड इसको U/A सर्टिफिकेट दे ताकि ये जिस वर्ग के ऑडियंस के लिए बनाई गई हैं उन तक ये फिल्म ज़रूर पहुंचे,इस फिल्म के बाद अमित राय की गिनती फिल्म इंडस्ट्री के उभरते हुए राइटर और डायरेक्टर्स में होगी,इस फिल्म को हर क्लास का ऑडियंस पसंद करेगा पर मेट्रो सिटीज में इस फिल्म को ज़्यादा पसंद किया जाएगा,इस फिल्म को वर्ड ऑफ़ माउथ से ऑडियंस मिलेंगें,ये एक मेहतपूर्ण फिल्म हैं,एक अच्छी कोशिश हैं,इसलिए हर परिवार को ये फिल्म कम से कम एक बार अपने बच्चों के लिए ज़रूर देखनी चाहिए,मेरी इस फिल्म के लिए रेटिंग रहेगी 3.5/5 स्टार्स,एन्जॉय
(रिव्यू का ये भाग आज ही ऐड किया गया हैं,ऊपर दिया गया रिव्यू 11 अगस्त 2023,को फिल्म के रिलीज़ के दिन पोस्ट किया गया था)
अब ये फिल्म नेटफ्लिक्स ओटीटी फ्लेटफॉर्म पर रिलीज़ की जा रही हैं,पर अफ़सोस की नेटफ़्लिक्स पर भी इस फिल्म को उसी तरह दिखाया जाएगा,जिस तरह ये सिनेमा हॉल्स में दिखाई गयी थी,ओटीटी पर वैसे तो इतनी उल-जलूल वेब सीरीज आती हैं,जिनको परिवार के साथ और तो और अकेले भी नहीं देखा जा सकता,क्यूंकि उनमें भर-भरके सेक्स,मार-धाड़,खून-खराबे के सीन्स होते हैं,पर "ओह माय गॉड 2" को ओटीटी पर उसके ओरिजिनल फॉर्म में रिलीज़ किया जाना चाहिए था,ताकि ऑडियंस देख पाती की फिल्म सेंसर बोर्ड ने फिल्म को जो 27 कट के साथ हाल में रिलीज़ किया और ओरिजिनल फिल्म जो फिल्म के डायरेक्टर अमित राय ने बनाई थी उसमें क्या फ़र्क़ था,शायद ओरिजिनल फिल्म विथाउट 27 कट ज्यादा बेहतर होती और उस से फिल्म का ऑडियंस इस फिल्म को और इसके मैसेज को और अच्छे से समझ पाता,पर अफ़सोस ऐसा न करके नेटफ्लिक्स ने एक बड़ी गलती की हैं,अब शायद OMG2 का ओरिजिनल वर्जन ऑडियंस को कभी नहीं देखने मिलेगा,ओटीटी प्लेटफार्म ने भी उसी गलती को दोहराया जिसे फिल्म सेंसर बोर्ड ने किया था,इस बारे में आपको क्या लगता हैं,कमेंट करके बताए,धन्यवाद्
अंकित मालवीय
Ankkit Malviyaa