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Saturday, August 14, 2010

"PEEPLI LIVE" REVIEW


लाइवली फिल्म है‘‘पीपली लाइव’’
निर्देशक,लेखक,स्क्रीनप्ले,संवाद-अनुषा रिजवी, निर्माता-आमिर खान प्रोडक्शन
गीतकार-संजीव शर्मा,स्वानन्द किरकिरे,ब्रिज मण्डल बढ़वई,नून मीम राशिद,गंगाराम, संगीतकार-इण्डियन ओशन, ब्रिज मण्डल बढ़वई, नगीन तनवरी,राम समपत कास्टिंग डायरेक्टर-महमूद फारूकी, सिनेमाटोग्राफी-शंकर रमन, एडीटर-हेमन्ती सरकार,एक्शन-जावेद एजाज़
इस शुक्रवार ‘‘पीपली लाइव’’ रिलिज हुई,दर्शकों को इस फिल्म का इन्तजार था,क्योंकि इस फिल्म के निर्माता आमिर खान है और इस फिल्म के प्रोमो भी लाजबाव है और इस फिल्म का सब्जेक्ट भी नयापन लिये हुए हैं, और यह आम मसाला हिन्दी फिल्मों से कुछ अलग है,दर्शकों को इस फिल्म से काफी उम्मीद थी और यह फिल्म सभी दर्शकों की उम्मीद पर पूरी तरह खरी भी उतरती है,‘‘पीपली लाइव’’ की कहानी किसानों की आत्महत्याओं,मीडिया,राजनीति पर व्यंग है,फिल्म की कहानी किसानों,मीडिया और राजनीति के इर्द-गिर्द रची गयी हैं,जिसमें किसानों,मीडिया और राजनीति से जुड़े लोगों की जिन्दगी को काफी करीब से मनोरंजक ढ़ंग से दिखाया गया है। लगभग 10 करोड़ में बनी इस फिल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के बढ़वई नामक गाँव में की गयी है। इस फिल्म के मुख्य किरदार नत्था (ओमकारदास माणिकपुरी) की यह पहली फिल्म है,ओमकारदास स्व. हबीब तनवीर के नया थियेटर कम्पनी से हैं,उनके अलावा अन्य कई रंगकर्मियों ने भी इस फिल्म में अभिनय किया है,इस फिल्म के कलाकारों ने फिल्म में गजब का अभिनय किया है,रघुवीर यादव,ओमकारदास माणिकपुरी,फारूक जफर,शालीनी वत्स,मल्लिका शिनोए,नवाजुद्दीन सिद्धकी,विशाल ओ. शर्मा,नशरूद्दीन शाह,युगल किशोर और सीताराम पांचाल इन सभी ने फिल्म में अपने किरदारों को जिया है। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जिन्हें देखकर आप हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाऐंगे (खास तौर से वह दृश्य जिसमें फारूख जफर हैं) फारूख जफर ने फिल्म में नत्था की माँ का किरदार अदा किया है,इस फिल्म में सभी कालाकारों का अभिनय एक से बढ़कर एक और काबिलेतारीफ है। खासतौर से रघुवीर यादव (बुधिया),ओमकारदास माणिकपुरी (नत्था),शालिनी वत्स(धनिया),फारूख जफर (नत्था की माँ),विशाल ओ. शर्मा (हिन्दी चैनल का रिपोर्टर) के बहतरीन अभिनय के कारण आप इस फिल्म को कई बार देखना चाहेंगे। इस फिल्म का गीत संगीत भी कमाल का है, और उसमें आपको अपनी जमीन और अपनी मिट्टी की खुशबू मिलती हैं जिसमें गाँव से जुड़े लोकगीत भी हैं,वैसे तो इस फिल्म के सभी गीत उम्दा हैं पर ‘‘मंहगाई डायन’’ और ‘‘देश मेरा रंगेरेज ये बाबू’’ सभी वर्ग के दर्शकों को काफी पसंद आऐंगे। इस फिल्म की कहानी संवाद और स्क्रीनप्ले काफी दमदार है। हालाकि कुछ लोगों को यह खटकेगा कि इस फिल्म में बहुत सारी जगह संवादों में अपशब्दों (गालियों) का इस्तेमाल किया गया है,पर मेरे हिसाब से फिल्म के डायलाॅग्स में गालियों का इस्तेमाल करना इस फिल्म की कहानी की मांग थी,क्योंकि असल जीवन में भी कई लोग हैं,जो जब भी परेशान होते हैं तो वह अपना गुस्सा अभिव्यक्त करने के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं,पर मुझे लगता है इस फिल्म में अपशब्दों का ज्यादा ही इस्तेमाल किया गया है,और फिल्म के कई सीन्स देखकर लगता है कि इन दृश्यों में अपशब्दों को जबरदस्ती बोला गया हैं क्योंकि उन दृश्यों में अपशब्द बोलना उन दृश्यों की मांग नहीं हैं,वह सीन्स बिना गालियों के भी हो सकते थे। फिल्म में अपशब्द होने के कारण ही इस फिल्म को सैंसर बोर्ड ने । (एडल्ट) सर्टिफिकेट दिया है। इस फिल्म में शंकर रमन का कैमरा वर्क अच्छा है और फिल्म की एडिटर हेमन्ती सरकार की कसी हुई ऐडिटिंग के कारण फिल्म दर्शकों को पूरे समय बांधकर रखती है,इस फिल्म के कोडायरेक्टर और कास्टिंग डायरेक्टर महमूद रिजवी ने इस फिल्म के लिये बिल्कुल सही ऐक्टर्स की कास्टिंग की है। ‘‘पीपली लाइव’’ की निर्देशक अनुषा रिजवी की बतौर निर्देशन की पहली फिल्म है,इस फिल्म का स्क्रीनप्ले,कहानी और संवाद भी अनुषा के लिखे हुए हैं। अनुषा रिजवी,खुद एक पत्रकार हैं और इसलिये फिल्म में किसानों,राजनीतिज्ञों और पत्रकारों की जिंदगी और चेनालों की टीआरपी की लड़ाई को वह इतने सटीक तरीके से पर्दे पर पेश करने में सफल हुई हैं। फिल्म में अनुषा का स्क्रीनप्ले देखने लायक हैं। उनके संवाद,कहानी और निर्देशन इतना अद्भुद है कि आप इस फिल्म को बार-बार देखना चाहेंगे। मुझे ‘‘पीपली लाइव’’ देखकर लगता है कि यह फिल्म अगर कोई और निर्देशक निर्देशित करता तो फिर शायद यह फिल्म और इतनी लाइवली नहीं होती,इस ‘‘पीपली लाइव’’ को लाइवली बनाने का श्रेय इसकी निर्देशक अनुषा रिजवी और उनकी पूरी टीम को जाता है,अनुषा ने फिल्म के सभी कलाकारों और उनकी टीम के अन्य सदस्यों से कमाल का काम करवाया है,अनुषा और उनकी पूरी टीम ने मिलकर ‘‘पीपली लाइव’’ को एक लाइवली फिल्म बनाया है,जिसके लिये अनुषा रिजवी और उनकी पूरी टीम सचमुच बधाई की पात्र हैं।

समीक्षक-अंकित मालवीय
Email ID : ankkitmalviyaa@gmail.com

Saturday, August 7, 2010

AISHA REVIEW


आशाओं पर खरी नहीं उतरती यह फिल्म ‘‘आयशा’’
निर्देशक - राजश्री ओझा, निर्माता - अनिल कपूर, अजय बिजली, संजीव के बिजली, रिया कपूर, गीतकार - जावेद अख्तर, संगीतकार - अमित त्रिवेदी, बैकग्राऊड स्कोर - अमित त्रिवेदी सिनेमेटोग्राफी - डिगो रोडरिक्स, एडिटर - श्रीकर प्रसाद, स्क्रीनप्ले-देविका भगत, डायलाग-देविका भगत, मनु रिषी, रितु भाटिया, कास्टयूम - परनिया कुरैशी, कुनाल रावत, प्रोमो-निलेश नायक।
इस शुक्रवार ‘‘आयशा’’ रिलिज हुई, सोनम कपूर और अभय देओल स्टारर ‘‘आयशा’’ के प्रोमो युवाओं को काफी पसन्द आ रहे थे, मुझे अफसोस हैं कि ‘‘आयशा’’ दृश्कों की आशाओं पर खरी नहीं उतरती, ‘‘आयशा’’ की कहानी जेन आॅस्टिन के उपन्यास (नावेल) एम्मा से प्ररित है, ये युवाओं की कहानी, जो एक लड़की ‘‘आयशा’’ (फिल्म में सोनम) और उसके दोस्तो के इर्द गिर्द चलती है, इस फिल्म में सोनम कपूर और अभय देओल के साथ अमृता पूरी, ईरा दुबे, सायरस साहूकर, अरूाणओदय सिंह, एम.के. रैना और लिसा हायडन ने भी अभिनय किया है, पर फिल्म में केवल अमृता पूरी का अभिनय ही दमदार है, उन्होंने अपने पात्र को जिया है और वह फिल्म के हर सीन में कमाल का अभिनय करते हुए दिखाई देती है, यह सच-मूच काबिले तारीफ है क्योंकि यह अमृता पूरी की पहली फिल्म है, उनके अलावा किसी के भी अभिनय में कोई खास दम नहीं हैं, फिल्म की मुख्य कलाकार सोनम कपूर का अभिनय भी बेदम है, फिल्म में अभय देओल जैसे उम्दा अभिनेता ने क्यों अभिनय किया यह मेरी समझ से परे है, क्योंकि फिल्म में अभय ने जिस पात्र को अदा किया है उसे ठीक तरीके से लिखा ही नहीं गया है, इसलिए अभय भी कुछ कमाल नहीं कर पाए, हो सकता है कि अनिल कपूर (जानेमाने अभिनेता और इस फिल्म के निर्माता) के होम प्रोडक्शन की फिल्म होने के कारण अभय ने दोस्ती का रिश्ता निभाने के लिए यह फिल्म कर ली हो, पर उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह एक उम्दा अभिनेता है, जो हमेशा अपनीं फिल्मों का चयन सोच समझकर करते हैं। आईए अब बात करते हैं ‘‘आयशा’’ के गीत संगीत की, ‘‘आयशा’’ के गीतकार जावेद अख्तर हैं उनके लिखा गीत ‘‘गल मीठी मीठी बोल’’ के बोल के तो क्या कहने जावेद अख्तर के इस गीत के बोल कमाल के हैं, और संगीतकार अमित त्रिवेदी है, इस फिल्म का गीत-संगीत ठीक-ठाक हैं, फिल्म में गीतकार अमित त्रिवेदी जिन्होंने इससे पहले ‘‘देव डी (2009)’’ में अच्छा संगीत दिया था, और इस फिल्म में भी युवाओं को उनके गीता पसन्द आएगे, खासतौर से इस फिल्म के तीन गीत ‘‘आयशा’’, ‘‘गल मीठी मीठी बोल’’, ‘‘बाॅय द वे’’ युवाओं की जुबान पर चड़ जाएगें। आईए अब बात करते हैं इस फिल्म के अन्य पहलूओं पर, ‘‘आयशा’’ का स्क्रीनप्ले बहुत ही कमजोर है जिसके कारण यह फिल्म बहुत ही धीमी और बोरिंग भी लगती हैं, फिल्म की एडिटींग भी ठीक से नहीं हुई है, फिल्म के संवादों में भी कोई खास दम नहीं है, इस फिल्म में अमित त्रिवेदी ने अच्छा बैग्राउंड म्यूजिक दिया है पर इस फिल्म के एक कमजोरी यह भी है कि फिल्म के बहुत से दृश्यों में ब्रैकग्राउड म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं किया गया हैं, जिसके कारण दर्शक उन सीन्स से जुड़ नहीं पाते, क्योंकि फिल्म में बैकग्राउड म्युजिक खाने में नमक की तरह ही होता है, जिस तरह बिना नमक के खाना बेस्वाद लगती है, उसी तरह बिना ब्रैग्राउड म्युजिक के फिल्म के दृश्यों में कोई जान नहीं रह जाती है, पर फिल्म के सिनेमोटोग्राफर डिगो रोडरिक्स का कैमरा वर्क अच्छा है, और फिल्म में परनिया कुरैशी और कुनाल रावत के कास्टयूक्स भी लाजवाब है। आईए अब बात करते हैं इस फिल्म के निर्देशन की, निर्देशक राजश्री ओझा की यह पहली फिल्म है, इस फिल्म की निर्देशक राजश्री ओझा के कमजोर निर्देशन के कारण ही न तो अभिनेताओं ने अच्छा अभिनय किया और फिल्म की कहानी को भी वह सही ढ़ग से पेश नहीं कर सकी जिसके कारण यह फिल्म झिलाऊ लगती है, इस फिल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वह खूबसूरत सोनम कपूर उनकी खूबसूरत पोशाके, अमृता पूरी का उम्दा अभिनय, अच्छा कैमरा वर्क और कुछ अच्छे गाने, जिनके लिए आप इस फिल्म को देख सकते हैं।
समीक्षक - अंकित मालवीय
Email ID: ankkitmalviyaa@gmail.com