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Saturday, August 7, 2010

AISHA REVIEW


आशाओं पर खरी नहीं उतरती यह फिल्म ‘‘आयशा’’
निर्देशक - राजश्री ओझा, निर्माता - अनिल कपूर, अजय बिजली, संजीव के बिजली, रिया कपूर, गीतकार - जावेद अख्तर, संगीतकार - अमित त्रिवेदी, बैकग्राऊड स्कोर - अमित त्रिवेदी सिनेमेटोग्राफी - डिगो रोडरिक्स, एडिटर - श्रीकर प्रसाद, स्क्रीनप्ले-देविका भगत, डायलाग-देविका भगत, मनु रिषी, रितु भाटिया, कास्टयूम - परनिया कुरैशी, कुनाल रावत, प्रोमो-निलेश नायक।
इस शुक्रवार ‘‘आयशा’’ रिलिज हुई, सोनम कपूर और अभय देओल स्टारर ‘‘आयशा’’ के प्रोमो युवाओं को काफी पसन्द आ रहे थे, मुझे अफसोस हैं कि ‘‘आयशा’’ दृश्कों की आशाओं पर खरी नहीं उतरती, ‘‘आयशा’’ की कहानी जेन आॅस्टिन के उपन्यास (नावेल) एम्मा से प्ररित है, ये युवाओं की कहानी, जो एक लड़की ‘‘आयशा’’ (फिल्म में सोनम) और उसके दोस्तो के इर्द गिर्द चलती है, इस फिल्म में सोनम कपूर और अभय देओल के साथ अमृता पूरी, ईरा दुबे, सायरस साहूकर, अरूाणओदय सिंह, एम.के. रैना और लिसा हायडन ने भी अभिनय किया है, पर फिल्म में केवल अमृता पूरी का अभिनय ही दमदार है, उन्होंने अपने पात्र को जिया है और वह फिल्म के हर सीन में कमाल का अभिनय करते हुए दिखाई देती है, यह सच-मूच काबिले तारीफ है क्योंकि यह अमृता पूरी की पहली फिल्म है, उनके अलावा किसी के भी अभिनय में कोई खास दम नहीं हैं, फिल्म की मुख्य कलाकार सोनम कपूर का अभिनय भी बेदम है, फिल्म में अभय देओल जैसे उम्दा अभिनेता ने क्यों अभिनय किया यह मेरी समझ से परे है, क्योंकि फिल्म में अभय ने जिस पात्र को अदा किया है उसे ठीक तरीके से लिखा ही नहीं गया है, इसलिए अभय भी कुछ कमाल नहीं कर पाए, हो सकता है कि अनिल कपूर (जानेमाने अभिनेता और इस फिल्म के निर्माता) के होम प्रोडक्शन की फिल्म होने के कारण अभय ने दोस्ती का रिश्ता निभाने के लिए यह फिल्म कर ली हो, पर उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह एक उम्दा अभिनेता है, जो हमेशा अपनीं फिल्मों का चयन सोच समझकर करते हैं। आईए अब बात करते हैं ‘‘आयशा’’ के गीत संगीत की, ‘‘आयशा’’ के गीतकार जावेद अख्तर हैं उनके लिखा गीत ‘‘गल मीठी मीठी बोल’’ के बोल के तो क्या कहने जावेद अख्तर के इस गीत के बोल कमाल के हैं, और संगीतकार अमित त्रिवेदी है, इस फिल्म का गीत-संगीत ठीक-ठाक हैं, फिल्म में गीतकार अमित त्रिवेदी जिन्होंने इससे पहले ‘‘देव डी (2009)’’ में अच्छा संगीत दिया था, और इस फिल्म में भी युवाओं को उनके गीता पसन्द आएगे, खासतौर से इस फिल्म के तीन गीत ‘‘आयशा’’, ‘‘गल मीठी मीठी बोल’’, ‘‘बाॅय द वे’’ युवाओं की जुबान पर चड़ जाएगें। आईए अब बात करते हैं इस फिल्म के अन्य पहलूओं पर, ‘‘आयशा’’ का स्क्रीनप्ले बहुत ही कमजोर है जिसके कारण यह फिल्म बहुत ही धीमी और बोरिंग भी लगती हैं, फिल्म की एडिटींग भी ठीक से नहीं हुई है, फिल्म के संवादों में भी कोई खास दम नहीं है, इस फिल्म में अमित त्रिवेदी ने अच्छा बैग्राउंड म्यूजिक दिया है पर इस फिल्म के एक कमजोरी यह भी है कि फिल्म के बहुत से दृश्यों में ब्रैकग्राउड म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं किया गया हैं, जिसके कारण दर्शक उन सीन्स से जुड़ नहीं पाते, क्योंकि फिल्म में बैकग्राउड म्युजिक खाने में नमक की तरह ही होता है, जिस तरह बिना नमक के खाना बेस्वाद लगती है, उसी तरह बिना ब्रैग्राउड म्युजिक के फिल्म के दृश्यों में कोई जान नहीं रह जाती है, पर फिल्म के सिनेमोटोग्राफर डिगो रोडरिक्स का कैमरा वर्क अच्छा है, और फिल्म में परनिया कुरैशी और कुनाल रावत के कास्टयूक्स भी लाजवाब है। आईए अब बात करते हैं इस फिल्म के निर्देशन की, निर्देशक राजश्री ओझा की यह पहली फिल्म है, इस फिल्म की निर्देशक राजश्री ओझा के कमजोर निर्देशन के कारण ही न तो अभिनेताओं ने अच्छा अभिनय किया और फिल्म की कहानी को भी वह सही ढ़ग से पेश नहीं कर सकी जिसके कारण यह फिल्म झिलाऊ लगती है, इस फिल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वह खूबसूरत सोनम कपूर उनकी खूबसूरत पोशाके, अमृता पूरी का उम्दा अभिनय, अच्छा कैमरा वर्क और कुछ अच्छे गाने, जिनके लिए आप इस फिल्म को देख सकते हैं।
समीक्षक - अंकित मालवीय
Email ID: ankkitmalviyaa@gmail.com

2 comments:

  1. Aisha is a movie based on advanced psychology.
    It is a great service to mankind. People with suicidal tendencies should watch this movie... By doing so they can pass on their tendencies to Anil kapoor for producing such a movie. The movie when watched in theaters is a great social binder... it is sooooooooooooooo bloody boring that people start to talk, play games, exchange numbers, sing songs and find people with similar taste and acumen. A great attempt to suffocate people in the theaters.
    Sardar Rating : -6.023x10^23 out of 5 :-/

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  2. the title given by u is suits the film in manner that it do not like by the audience,and
    why they watch movie only for sonam kappor and amrtita puri as they pay money whole packages which include story,dialouge writing,acting etc which is very poor.so i rate this film as a very weak script as a whole

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