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Friday, February 4, 2011

YE SAALI ZINDAGI REVIEW





साली तो हैं,पर"जि़न्दगी नहीं"
निर्माता-प्रकाश झा,निर्देशक-सुधीर मिश्रा,लेखक-सुधीर मिश्रा,पटकथा-सुधीर मिश्रा,संवाद-सुधीर मिश्रा मनु ऋ षि,संगीत निर्देशक
निशात खान,अभिषेक रे,गीतकार-स्वानंद किरकिरे, मानवेंद्र, सिनेमाटोग्राफी-सचिन कुमार कृष्णन
इस शुक्रवार ‘ये साली जिन्दगंी’ रिलिज हुई, इस फिल्म के निर्देशक सुधीर मिश्रा है और इस फिल्म में ईरफान खान, अरूणोदय ङ्क्षसग, चित्रांगदा ङ्क्षसग और अदिति राव ने मुख्य भूमिका निभाई हैं, ‘ये साली जिन्दगी’ के निर्देक सुधीर मिश्रा की फिल्मों को पसन्द करने वाला एक खास वर्ग है, सुधीर मिश्रा की ‘इस रात की सुबह नहीं’ (1996) को फिल्म उद्योग के लोगों और फिल्म समीक्षकों ने खूब सराहा, पर उन्हें उनके द्वारा निर्देशित फिल्म हजारो ख्वाहिशे ऐसी 2005 से आम आदमी के बीच पहचान मिली, पर सुधीर मिश्रा की फिल्म ये साली जिन्दगी की बात करे तो इस फिल्म की कहानी में कई किरदार और कई टै्रक है, जिसके कारण यह फिल्म बेहद आडियन्स क्नयफ्यूज करती है फिल्म देखते समय दर्शक के लिए यह समझना बड़ा कठिन होता हैं कि फिल्म में कौन सा टै्रक चल रहा हैं, फिल्म के सभी किरदारों के आपस में किस से क्या संबन्ध है, और फिल्म में कभी भी कोई भी सीन आ जाता है, जिसका पिछले सीन से कोई संबंध नहीं है, उसी तरह पूरी फिल्म में थोड़ी-थोड़ी देर बाद नए-नए किरदार फिल्म की कहानी में आ जाते हैं, जिससे फिल्म को समझने में काफी दिक्कत आती है, इस फिल्म को देखते हुए ऐसा भी लगता हैं कि फिल्म में कुछ अलग-अगल कहानियां बनाकर उन्हें जबरदस्ती साथ में जोडऩे की कोशिश की गई है, वैसे तो किसी भी फिल्म में उसके शुरूआती 10-15 मिनिट या ज्यादा से ज्यादा आंधे घण्टे में उस फिल्म के किरदारों और कहानी को इस्टेबलिश कर दिया जाना चाहिए, ताकि दर्शक फिल्म की कहानी और उसके किरदारों को समझ कर फिल्म का मजा उठा सके, पर ‘ये साली जिन्दगी’ में फिल्म की कहानी और किरदारों को इस्टेबलिश होने में बहुत समय लगता है जिसके कारण दर्शक इस फिल्म से ऊब जाते है, इस फिल्म की कमजोर लिखाई, कमजोर पठकथा और सुस्त एडीटिंग के कारण ही यह फिल्म झिलाऊ लगी, हालकि इस फिल्म के संवाद अच्छे है, जिनमें बहुत से पर पचेज हैं जिनके कारण आपको हंसी आ जाएगी, जैसे ‘‘एक ईमानदार आदमी सबका नाम खराब करता है’’ , ‘‘तूने एक इंच जुबान खोली उसके बारे में तो मैं 1.5,1.5 इंच छेद करूंगा, पता भी नहीं कहा करूंगा’’, ‘‘कमाल है ये साली जिन्दगी गलत जगह पे सही चीज मिल गई’’, ‘‘इन्टरव्यूह ले रहे हो मेरा’’, ‘‘सारी अक्ल इसके पास है, और हम सारे चू...या हंै’’, ‘‘शादी श्रीदेवी से की थी निकली फूलन देवी’’,‘‘ मैंने आप के साथ कुछ तो किया जिसके कारण आपकों वो लगा जो लगा’’, ‘‘मुझे एक बात बता दे तू सगी किसकी है’’, ‘‘लोग सुनेगे तो क्या कहेगे की चु..या आशकी के चक्कर में मारा गया और लडक़ी भी नहीं मिली’’, ‘‘इश्क और बुलैट में कोई फर्क नही होता, दोनो छाती फाडक़र निकलती है’’, ‘‘ये तो उड़ता तीर ले लिया भाई साहब आपने अपनी ग...... में ये सब ऐसे कई डायलाग हैं जिन पर दर्शक हंसते और ताली बजाते हैं, मुन ऋषि और सुधीर मिश्रा ने फिल्म के लिए कई उम्दा संवाद लिये है, पर उनके संवादों में एक बुराई यह हैं कि फिल्म के ज्यादप्तर किरदार पूरी फिल्म में अपशब्दों (यानि की गाली गलौच) का बेजा इस्तेमाल करते है, जिसकी कोई जरूरत नहीं है अगले फिल्म के कुछ दृश्यों में सीन की डिमांड होने परद गाली गलौच होती तो शायद वो ठीक लगती, पर इस फिल्म में ऐसा लगता हैं कि किरदार जबरदस्ती गाली दे रहे हैं, वहीं इस फिल्म में अरूणोदय सिंह और अदिती राव हेदरी के बीच 22 स्मूचिंग सीन हैं, जिनकी फिल्म में कोई भी जरूरत नहीं, हालांकि इसके और गालियों के उपयोग के कारण फिल्म सेन्सर बोर्ड ने इस फिल्म को ड्डसर्टिफिकेट दिया है (एडल्ट सर्टिफिकेट)। इस फिल्म में कुछ सीन आपको हसाने पर मजबूर हसाने को मजबूर कर देंगे, जैसे कि वो सीन जहां ईरफान खान और चितरागदा मरे हुए आदमी के अगूठे का निशान लेते हैं, जैसे वो सीन जहां ईरफान खान बीच सडक़र पर अपनी गाड़ी के ऊपर बैठे है, वो सीन जहां विपिन शर्म अंग्रेजी बोलने की कोशिश करते हैं। इस फिल्म का गीत-संगीत निशात खान और अभिषेक रे तैयार किया है जो कि काबिले तारीफ है, इस फिल्म के लिए स्वानन्द किरकिरे और मनवेंद्र ने फिल्म परिस्थितियों के हिसाब से अच्छे अर्थपूर्ण गीत लिखे है, हालाकि आपको फिल्म के ज्यादातर गीत टुकडे-टुकड़ों में अलग-अलग जगह बैग्राऊंड में सुनाई देंगे। वैसे तो ईरफान खान, चित्रांगदा ङ्क्षसग और अरूणोदय ङ्क्षसग ने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है, पर इनके अलावा सुशान्त ङ्क्षसग, सौरव शुक्ला और विपिन शर्मा ने भी फिल्म के अहम किरदारों को अदा किया है, ईरफान खान ने फिल्म में अपने द्वारा निभाए गए किरदार को जिया है, फिल्म में उनका अभिनय देखने लायक है खास तौर पर उनकी संवाद अदायगी (डायलोग डिलेवरी स्टाइल) वहीं अरूणोदयङ्क्षसह और चित्रांगदा ङ्क्षसह का अभिनय ठीक ठाक हैं। इस फिल्म की दूसरी अभिनेत्री अदिति राव हेदरी ने इस फिल्म कमाल का अभिनय किया है, इस फिल्म में सुशान्त सिंह ने बेहद उम्दा अभिनय किया है सुशान्त का अभिनय पूरी फिल्म में देखते ही बनता है, वही फिल्म में विपिन शर्मा का अभिनय आपको भा जाएगा। वैसे तो यह फिल्म की कहानी और स्क्रीन प्ले क्लासेस के लिए हैं पर इसके संवाद मासेस को ध्यान में रखकर लिखे गए हंै, और इसी खिचड़ी के कारण ये फिल्म न तो मासेस को बहुत ज्यादा पसन्द और न ही क्लासेस को ज्यादा पसन्द आएगी, इस फिल्म का नाम ‘‘दिल दर बदर’’ रखें या ‘‘ये साली जिन्दगी’’ रखे (इसके लिए सुधीर मिश्रा ने एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर आपने मित्रों और आम जनता से इस फिल्म का प्रोमों देखकर इन दोनों में से एक नाम चुनने को कहा था, और ज्यादातर लोगों ने कहा की इस फिल्म का नाम ‘‘ये साली जिन्दगी’’ होना चाहिए) उसी तरह सुधीर मिश्रा की फिल्म को देखकर लगता है कि इस फिल्म को बनाते समय भी सुधीर मिश्रा बेहद कन्फ्यूज रहे कि वे क्या बनाना चाहते हंै, और इसी कारण सुधीर मिश्रा ने एक क्नफ्यूज सी फिल्म बनाई है, जिसमें साली तो है (मतलब खूब गाली गलौज) पर जिन्दगी नहीं हैं (मतलब फिल्म में दम नहीं हैं) पर अगर आप अच्छे संवाद और उम्दा अभिनय देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को देख सकते हैं।
फिल्म समीक्षक-अंकित मालवीय
Email: Id ankkitmalviyaa@gmail.com
plz post ur comments here about this review and film,thanks,god bless,bye

1 comment:

  1. wow ankkit grt job ur review is superb,i enjoy reading tht...keep it up

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